जंतु व्यवहार ,बचपन के दिनों में अन्य बच्चों की तरह मेरा सहज लगाव भी जीव-जंतुओं से था ? मनीष मोहन गोरे द्वारा लिखित पुस्तक कि कहानी। भाग-1
जंतु व्यवहार ,बचपन के दिनों में अन्य बच्चों की तरह मेरा सहज लगाव भी जीव-जंतुओं से था ? मनीष मोहन गोरे द्वारा लिखित पुस्तक कि कहानी।।। भाग -1
Part -2 click the link 👇👇👇👇👇
◉‿◉ अपनी बात Part -1 ◉‿◉
बचपन के दिनों में अन्य बच्चों की तरह मेरा सहज लगाव भी जीव-जंतुओं से था। विज्ञान की शिक्षा और इससे बोस वर्ष लंबे साहचर्य द्वारा मुझे यही समझ में आया है कि हम मनुष्यों का जीव-जंतुओं की ओर झुकाव इसलिए होता है। क्योंकि जीवों के विकास के समय हमारे मनुष्य बनने से पहले हम जिस भी रूप में थे, जंतु समान थे और प्रकृति में अन्य जीव-जंतुओं के साथ रहते थे। आधुनिक विज्ञान द्वारा जीवन की जो आणविक परिभाषा दी गई है उससे यह साबित हो गया है कि सभी जतु (मनुष्य सहित) परस्पर जुड़े हुए हैं अर्थात एक का दूसरे के साथ कोई जैवीय रिश्ता अवश्य है।
जब मेरी उम्र छ: वर्ष की थी तो एक दिन स्कूल के मैदान में दोपहर का भोजन करते समय न जाने कब आकाश से उड़ती हुई एक चील आई और झपट्टा मारकर मेरे हाथ से भोजन का निवाला छीन ले गई। में अचानक सकते में आ गया था। इसके अलावा सपेरों द्वारा गली मोहल्लों में बीन बजाकर सांपों को नचाने का करतब देखकर में रोमांचित हो जाता। बचपन के दिनों में हाथी को देखकर भी मन रोमांच से भर जाता था। इन सब घटनाओं ने मिलकर मेरे बाल मन में जीव-जंतुओं से एक मोह और असीम लगाव उत्पन्न कर दिया था। कुछ और बड़ा हुआ तो जीव विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों में जीवों के विषय में प्रामाणिक और विज्ञानपरक तथ्यों से मेरा परिचय स्थापित हुआ।
डॉ मनीष मोहन गोरे ....
इसी दौरान मुझे जंतुओं के वर्गीकरण और अकशेरुकी तथा कशेरुकी जंतुओं के बारे में ज्ञान प्राप्त हुआ। सांप के कान नहीं होते और वह संपेरे की बीन की धुन पर नहीं, बीन के हमले से बचने के लिए हरकत करता है; खरगोश मलभोजी (caprophagy) होता है मेंढकों में केवल नर मेंढक टर्स-टर्स की आवाज निकालते हैं और डॉल्फिन मछलियां नहीं होते बल्कि ये हमारे समान स्तनधारी जंतु हैं और फेफड़ों की मदद से सांस लेते हैं तथा पक्षी अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए हजारों किलोमीटर लंबी कठिन प्रवास यात्राएं करते हैं। जंतुओं की दुनिया से जुड़ी इन जैसी तमाम बातों की वैज्ञानिक जानकारी भी मुझे उसी दौरान हो गई थी।
जीव विज्ञान में मेरी दिलचस्पी बढ़ती चली गई और इसी धारा में मैंने अध्ययन जारी रखा। बचपन में जीव-जंतुओं से लगाव ने मुझमें युवावस्था में जंतु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और जंतु व्यवहार के बारे में और अधिक जानने का कुतूहल भरा। बी एससी और एम एससी कक्षाओं में अध्ययन के दौरान मैंने विश्वविद्यालय के समृद्ध पुस्तकालय में उपलब्ध जंतु व्यवहार से संबंधित लगभग हर पुस्तक को पढ़ डाला। जंतुओं के मजेदार व्यवहार स्वरूपों की वैज्ञानिक व्याख्याओं को पढ़ना-समझना, जीवों के प्रति मेरे सहज अनुराग के कारण था और इससे मुझे बहुत आनंद मिलता था। एम एससी के दौरान मैंने जंतु व्यवहार से जुड़ी क्लासिक पुस्तकों को पढ़ लिया था। इनमें दि फाउंडेशन्स ऑफ इथोलॉजी (कोनरेड लारेंज), सोशल बिहेवियर इन एनिमल्स, एनिमल बिहेवियर (निको टिनबर्जन), एन इंट्रोडक्शन टू एनिमल बिहेवियर (अग्रे मेनिंग) और एनिमल वाचिंग दि नेकेड एप (डेसमंड मॉरिस ) पुस्तकें उल्लेखनीय हैं जिन्होंने गहरा प्रभावित किया तथा जंतु व्यवहार की धारा से मुझे जुड़ने का मौका दिया। दिन-प्रतिदिन के प्राकृतिक अवलोकनों में विभिन्न जंतुओं के व्यवहारों को देखकर मेरी जो समझ बनती, उसे मैं उपरोक्त क्लासिक कृतियों के निष्कर्षो से तुलनात्मक अध्ययन किया करता । इस अभ्यास की मदद से मुझमें एक ऐसा गुण विकसित हो गया जिसके कारण मैं जंतु व्यवहार के सटीक मूल्यांकन करने में समर्थ हो गया। विभिन्न जंतुओं की आदतों स्वभाव और व्यवहार का सूक्ष्म अवलोकन करने के उद्देश्य से मैंने अनेक राष्ट्रीय उद्यानों तथा वन्य जीव अभ्यारण्यों में भी समय बिताया।
Thank you Next part ......
Part -2 click the link 👇👇👇👇👇
Comments
Post a Comment